हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट ने व्यापक चर्चा छेड़ दी है, जिसमें लिखा गया:
“बहुत जल्दी, पूरा कश्मीर हमारा होगा,
सिंध एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा,
बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा।”
यह संदेश न केवल भारत की कूटनीतिक दिशा की ओर इशारा करता है, बल्कि यह पाकिस्तान में लंबे समय से चल रहे अंदरूनी संघर्षों और भारत के बढ़ते आत्मविश्वास का भी संकेतक बन गया है।
1. पूरा कश्मीर हमारा होगा: ऐतिहासिक लक्ष्य और जनमानस की भावना
“पूरा कश्मीर हमारा होगा” सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि भारत के लिए एक ऐतिहासिक और संवैधानिक लक्ष्य है।
1947 के बाद से पाकिस्तान ने जिस तरह से पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) पर अवैध कब्जा किया है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विवादित रहा है।
- धारा 370 की समाप्ति के बाद भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है – पूरा का पूरा, जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान और मीरपुर-मुज़फ्फराबाद भी शामिल हैं।
- भारतीय जनमानस का बड़ा हिस्सा अब मानता है कि अगला कदम पीओके को भारत में एकीकृत करना ही होना चाहिए।
2. सिंध और बलूचिस्तान: पाकिस्तान के भीतर पनपती अलगाव की आग
सिंध और बलूचिस्तान को लेकर यह कहना कि “वे स्वतंत्र राष्ट्र बनेंगे”, कोई कोरी कल्पना नहीं है। दोनों प्रांत लंबे समय से पाकिस्तान के दमनकारी रवैये से पीड़ित हैं।
▶️ बलूचिस्तान:
- दशकों से बलूच स्वतंत्रता सेनानी पाकिस्तान के सैन्य दमन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
- मानवाधिकार उल्लंघन, जबरन गायबियाँ और संसाधनों की लूट के कारण बलूच लोगों में अलगाव की भावना गहराती जा रही है।
▶️ सिंध:
- सिंध में भी “सिंधुदेश” आंदोलन वर्षों से दबे स्वर में चल रहा है।
- सिंधी समुदाय को लगता है कि उन्हें पाकिस्तान में सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से दबाया जाता है।
भारत अगर सीधे तौर पर नहीं, तो राजनयिक मंचों पर इन आवाज़ों को समर्थन देकर पाकिस्तान को आंतरिक रूप से अस्थिर कर सकता है।
3. भारत की बदलती रणनीति: आक्रामक रक्षात्मक नीति
भारतीय सेना और रणनीतिक हलकों में अब आक्रामक रक्षात्मक नीति (Offensive Defensive Strategy) को अहमियत दी जा रही है:
- अगर पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता है, तो भारत केवल रक्षा नहीं करेगा, बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक या एयरस्ट्राइक जैसे कदम उठाकर जवाब देगा।
- विदेश नीति के स्तर पर भारत अब ‘रणनीतिक चुप्पी’ नहीं, बल्कि प्रभावी संप्रेषण की नीति अपना रहा है।
4. अंतरराष्ट्रीय संदर्भ और चीन का रोल
- पाकिस्तान की आर्थिक हालत, IMF की शर्तें और FATF जैसी वैश्विक संस्थाओं के दबावों ने उसकी हालत पतली कर दी है।
- चीन की सीपैक (CPEC) परियोजना के तहत बलूचिस्तान में दखल भी वहां की जनता को और आक्रोशित कर रहा है, जिसका फायदा भारत को मिल सकता है।
निष्कर्ष: क्या यह सिर्फ ट्वीट है या रणनीतिक संकेत?
हालांकि ऊपर दिया गया संदेश किसी आधिकारिक बयान का हिस्सा नहीं है, लेकिन यह आज के भारत के आत्मविश्वास और भविष्य की रणनीति का संकेत अवश्य देता है।
भारत का दृष्टिकोण अब स्पष्ट होता जा रहा है — हम शांति चाहते हैं, लेकिन डरते नहीं हैं। हम जवाब देंगे, लेकिन सोच समझकर और पूरी तैयारी के साथ।
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