अहमदाबाद। विकास की अंधी दौड़ के बीच गुजरात में आत्महत्या के मामले चिंताजनक रूप से बढ़े हैं। गुजरात में पिछले एक साल में 13 से अधिक परिवारों ने सामूहिक आत्महत्या की है। जिसमें बच्चों समेत 41 लोगों की जान गई। आत्महत्या करने वालों में खेतिहर मजदूर, फेरिया, श्रमिक और किसान हैं। इसके अलावा करियर और असफलता आदि कारणों से आत्महत्या करने वाले छात्रों की तादाद भी ज्यादा है।
बढ़ती महंगाई में परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया है। बेरोजगारी की समस्या विकराल बनी हुई है। दूसरी ओर आय से ज्यादा खर्च है। इस असमानता के कारण अधिकांश परिवार आर्थिक तंगी झेलने को मजबूर हैं। लोगों को सामाजिक सुरक्षा का डर भी सताने लगा है। लोग घर का खर्च चलाने के लिए कर्ज लेने को मजबूर हैं। सूदखोरों के चक्कर में पड़कर आत्महत्या कर रहे हैं। विकासशील गुजरात में आत्महत्या के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। असंगठित मजदूरों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। रोज कमाकर खाने वाले, फेरिया, फुटपाथ पर ठेला लगाने वालों की आत्महत्या के मामलों में 50.44% की बढ़ोतरी हुई है। पिछले छह साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो 16862 लोगों में आर्थिक तंगी से आत्महत्या की है। वहीं, पिछले पांच साल में 3740 छात्रों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या करने वालों में सूरत सबसे आगे है।
गुजरात में साल में 13 परिवारों ने सामूहिक आत्महत्या की: आर्थिक तंगी, कर्ज, सामाजिक असुरक्षा जिम्मेदार
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