इंदौर | 25 अप्रैल 2025
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को आक्रोशित और शोकाकुल कर दिया है। इस हमले की गूंज इंदौर तक भी सुनाई दी, जहां कुलकर्णी नगर निवासी श्यामलाल निनोरी ने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला लिया — 40 वर्षों की सेवा के बाद, उन्होंने सैयद निजामुद्दीन दरगाह से नाता तोड़कर दोबारा हिंदू धर्म अपना लिया।
शाहबुद्दीन से श्यामलाल तक की यात्रा
श्यामलाल निनोरी, जिन्हें स्थानीय लोग दशकों से ‘शाहबुद्दीन’ कहकर बुलाते थे, दरगाह की सेवा में पूरी निष्ठा से जुटे हुए थे। ग्वालियर ऑयल मिल परिसर में बनी इस दरगाह में उन्होंने कव्वाली, चादरपोशी और इबादत के सभी कार्य निभाए। लेकिन पहलगाम हमले ने उनकी आत्मा को झकझोर दिया। उन्होंने अपने भीतर की आवाज़ सुनी और एक शांतिपूर्ण तरीके से अपने मूल धर्म में वापसी का निर्णय लिया।
दरगाह पर कव्वाली नहीं, सुंदरकांड
धर्म परिवर्तन के प्रतीक के तौर पर श्यामलाल ने दरगाह पर इस बार कव्वाली के बजाए सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया। यह आयोजन उनके निर्णय की सार्वजनिक घोषणा थी, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उनका यह कदम किसी समुदाय या धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि उनके आत्मिक शुद्धिकरण का प्रतीक है।
“पहलगाम में निर्दोषों पर हुआ हमला मेरे लिए आंखें खोलने वाला क्षण था। मैं अब अपने आरंभिक संस्कारों और धार्मिक आस्था की ओर लौट रहा हूं,” श्यामलाल ने कहा।
समाज की प्रतिक्रिया
स्थानीय समुदाय ने श्यामलाल के इस फैसले को शांति और धर्मनिरपेक्षता की मिसाल बताया। उनका मानना है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और बहु-सांस्कृतिक देश में हर व्यक्ति को अपनी आस्था और पहचान चुनने की पूरी स्वतंत्रता है।
यह घटना धार्मिक स्वतंत्रता पर एक प्रेरणादायक दृष्टिकोण पेश करती है और बताती है कि यदि परिवर्तन आत्मा की पुकार पर हो, तो वह समाज में समरसता और मानवीय मूल्यों को और मज़बूत करता है।
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