मंगलवार भस्म आरती
उज्जैन की धरती पर सुबह का पहला उजाला एक अलग ही ऊर्जा लेकर आता है। खासकर मंगलवार को, जब महाकालेश्वर मंदिर में होती है भस्म आरती, तो हर भक्त की आत्मा तक झंकृत हो उठती है। यह नज़ारा न केवल आंखों से देखा जाता है, बल्कि दिल से महसूस किया जाता है।
भस्म आरती: एक अनोखी भक्ति की मिसाल
सुबह 4 बजे, जब दुनिया नींद में होती है, उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। यहां भगवान शिव को भस्म (राख) से श्रृंगारित किया जाता है — एक ऐसी परंपरा जो और कहीं नहीं देखने को मिलती। यह भस्म आम नहीं होती; इसे विशेष विधियों से शुद्ध किया जाता है और फिर भगवान को चढ़ाया जाता है।
भांग, चन्दन और त्रिपुण्ड का अभिषेक
भस्म अर्पित करने के बाद भगवान महाकाल को भांग चढ़ाई जाती है — यह शिव की प्रिय वस्तु मानी जाती है। फिर चन्दन का लेप किया जाता है, जिससे शिवलिंग को ठंडक मिलती है। त्रिपुण्ड (तीन रेखाएं) चन्दन या भस्म से लगाए जाते हैं, जो शिव की तांडव ऊर्जा, तपस्या और त्याग का प्रतीक हैं।
रुद्राक्ष और रजत मुकुट से होता है श्रृंगार
श्रृंगार में भगवान महाकाल को रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है। रुद्राक्ष न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत होता है, बल्कि यह शिवभक्तों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके बाद भगवान को रजत मुकुट पहनाया जाता है — एक चांदी का सुंदर मुकुट जो उनकी दिव्यता को और भी उजागर करता है।

क्यों खास होता है मंगलवार?
मंगलवार को शिव की आराधना विशेष रूप से फलदायक मानी जाती है। यह दिन संकटमोचन हनुमान जी का भी है, और शिव व हनुमान का गहरा संबंध है। इसलिए इस दिन भस्म आरती में भाग लेना एक विशेष पुण्य का कार्य माना जाता है।
भक्तों की भीड़ और भक्ति का समर्पण
भस्म आरती के दौरान महाकालेश्वर मंदिर में ऐसी भक्ति उमड़ती है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हर “हर-हर महादेव” की गूंज के साथ मन में शक्ति और आत्मा में शांति उतरती है। कई लोग तो महीनों पहले से रजिस्ट्रेशन करवा कर इस आरती में शामिल होने आते हैं।
निष्कर्ष
मंगलवार की भस्म आरती सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भगवान महाकाल से जुड़ने का एक सजीव अनुभव है। भांग, चन्दन, त्रिपुण्ड, रुद्राक्ष और रजत मुकुट से सजे महाकाल को देखना जीवन भर की पूंजी बन जाता है।
अगर आपने अब तक यह दिव्य अनुभव नहीं लिया है, तो अगली बार उज्जैन जाएं तो मंगलवार की सुबह महाकालेश्वर मंदिर जरूर जाएं — क्योंकि वहाँ सिर्फ भगवान नहीं, स्वयं समय विराजमान है।
हर हर महादेव!
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